भविष्य उज्जवल हो Bhavishya Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

भविष्य उज्जवल हो Bhavishya

भविष्य उज्जवल हो

चला गया
वर्ष बित गया
कुछ दे आया
कुछ ले गया।

कत्लेआम हुआ
सरेआम हुआ
लोग घरभंग हुए
देश छोड़ने पर मजबूर हुए।

बिताई सर्द रातें आसमान के नीचे
भूखे और भय के साथ सोए छोटे बच्चे
किसी के मरने का हरदम अंदेशा
यही था सालभर का संदेशा।

हम फिर सत्यमार्गी है
फिर भी लोगों की मर्जी है
कभी बह्कावेमे आ जाते है
देश की संपत्ति को जला देते है।

देश का हर नागरिक जिम्मेदार हो
देश की संपत्ति का सही हकदार हो
दिल से कहे की में इसकी रक्षा करूँगा
समय आनेपर खुद का बलिदान भी दे दूंगा।

जो चला गया उसे याद नहीं करना
जो हो रहा है उसका गम नहीं करना
आनेवाला है उसे नजर के सामने रखना
भविष्य उज्जवल हो उसकी ही कामना करना।

भविष्य उज्जवल हो  Bhavishya
Monday, December 26, 2016
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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