बापू, आपने गोली क्यों ख़ाली?
क्यों ना आप की एक भी चली?
आपने कहा था, 'स्वराज में दिलाउंगा?
सही मायनो में 'स्वत्तन्त्रता ले के रहूंगा
आप चाहते तो शरीर पर कवह रख सकते थे
चारो और कमांडो रखकर घूम सकते थे
आपने ये नहीं किया और नई राह दिखा दी
'आप का नाम लेकर इन्होने ऊँगली दिखा दी'
आजादी का जश्न सिर्फ सरकारी बाबुओके के लिए है
श्रमिक और भूखा आज भी वस्त्रहीन है
ये चमचमाती गाड़ियाँ और ये कहलाने वाले उनके निवासस्थान
सब एक साथ चला रहे है अपनी आन, बान और प्रतिष्ठान
बापू आप कहते थे ' देश गाँव में बसता है '
किसान हल जोतता है तो 'हमारा पेट भरता है'
आज अस्सी रूपये प्याज और बीस रूपये आलू बिकता है
श्रमिक आग उगलती धुप में और किसान रात में मरता है
पता नहीं ये कौनसी भूख है जो मिटती ही नहीं?
जिंदगीयाँ ख़त्म हो रही है पर महंगाई हटती ही नहीं
मेरा देश फिर बेहाल हो रहा है, शराब रस्ते पर बिक रही है
देश का कोई न सोचे ये बेल्कुल ही ठीक नहीं है!
बापू यदि आज आप ज़िंदा होते तो बिलख बिलखकर रोते
न आपसे रोते बनता और न शांति से सोते
हरदम आपको इनका जीन आकर सताता
मजबूर करता कुछ करने को और फिर खुब रूलाता
ये सब हवाईजहाज के बिना चलते नहीं
पंचतारक होटल के बिना जमते(खाते) नहीं
सादगी इनसे कोसो दूर है और नामोनिशान तक नहीं
आपकी तस्वीर ही बस बची है एक निशानी
इनका निशान अब है गरीबों की बस्ती पर
जब मर्जी आई जला दिया सस्ती लोकप्रियता पानेपर भय पैदा करेंगे दिलो में
अब गरीब ही नहीं बचने देंगे आनेवाले दिनों में
पढ़ाई तो दूर, दाने दाने के लिए भय पैदा करेंगे दिलो में
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