भुला नहीं कहते.. bhula nahi kehta Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

भुला नहीं कहते.. bhula nahi kehta

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भुला नहीं कहते

काश हमें वो मिल ही जाती
जिन्दगी हमारी बस तो जाती
ऐसी नोबत कभी तो ना आती
जिन्दगी ठोकरे कभी तो ना लगाती

कैसे दिल को में कहता?
तू दुसरे का अब होके रेहजा
तू ना मिलती फिर भी ये राहे
मुज को भुला देती बिच चोराहे

तेरा जाना ही मेरा था पतन
फिर भी दिल में है, वैसी ही लगन
किसी से मुझ को अब क्या लेना?
पास बचा नहीं अब दिल बेगाना

जीवन मैंने अधूरा ही पाया
दिल से तुझको भुला ना पाया
पूरा समंदर सामने आया
फिर भी प्यास मेरी वो बुझा नहीं पाया

कैसे बताऊ में दिलकी लगी को
मनोदशा मेरी, जैसे एक रोगी को
मेरा दिल अब भी खाली है
तू दुसरे की अब घरवाली है

मेरा घर अब एक बसेरा
वहां कैसे होगा सवेरा सुनेहरा
भूले को हम भुला नहीं कहते
प्यार मेरा था गैरो का अब कैसे कहते?

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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