चाहत के रंग
बुधवार, ७ नवम्बर २०१८
मुझे क्यों लगे ऐसा?
किसी पर कैसे करे भरोसा
आजतक लोगो ने मुझे ऐसा ही परोसा
कोई ना लगा अपना सा।
चाहा मैंने सादगी भरा जीवन
बीतता गया मेरा यौवन
एक से हम दो हो गए
जीवन के अटूट बन्धनमे बन्ध गए।
ना रखा गीला कोई मन में
चाहत केरंग बिखेरे सब में
गले से मिलकर सखुशी बांटी
छोटी रही दुनिया रहकर मुझ में सिमटी।
माना की सब एक जैसे नहीं होते
कुछ तो कहते रहते रोते रोते
कोई मिल जाए रंगीन मिजाज के
आपको खुश कर देते हँसते हँसते।
मिलकर रहना आपकी आदत है
प्रेम ही तो सन्देश और इबादत है
हमारी सब के एक ही नसीहत है
जो ना रहसको मिलकर तो फिर ल्यानत ही है
हसमुख मेहता
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मिलकर रहना आपकी आदत है प्रेम ही तो सन्देश और इबादत है हमारी सब के एक ही नसीहत है जो ना रहसको मिलकर तो फिर ल्यानत ही है हसमुख मेहता
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