चाहत के रंग... Chahat Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

चाहत के रंग... Chahat

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चाहत के रंग
बुधवार, ७ नवम्बर २०१८

मुझे क्यों लगे ऐसा?
किसी पर कैसे करे भरोसा
आजतक लोगो ने मुझे ऐसा ही परोसा
कोई ना लगा अपना सा।

चाहा मैंने सादगी भरा जीवन
बीतता गया मेरा यौवन
एक से हम दो हो गए
जीवन के अटूट बन्धनमे बन्ध गए।

ना रखा गीला कोई मन में
चाहत केरंग बिखेरे सब में
गले से मिलकर सखुशी बांटी
छोटी रही दुनिया रहकर मुझ में सिमटी।

माना की सब एक जैसे नहीं होते
कुछ तो कहते रहते रोते रोते
कोई मिल जाए रंगीन मिजाज के
आपको खुश कर देते हँसते हँसते।

मिलकर रहना आपकी आदत है
प्रेम ही तो सन्देश और इबादत है
हमारी सब के एक ही नसीहत है
जो ना रहसको मिलकर तो फिर ल्यानत ही है

हसमुख मेहता

चाहत के रंग... Chahat
Wednesday, November 7, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 07 November 2018

welcome S.r. Chandrslekha 70 mutual friends Message

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Mehta Hasmukh Amathalal 07 November 2018

welcome Justice Chikandamina 14 mutual friends 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 07 November 2018

मिलकर रहना आपकी आदत है प्रेम ही तो सन्देश और इबादत है हमारी सब के एक ही नसीहत है जो ना रहसको मिलकर तो फिर ल्यानत ही है हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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