चलो दिल्ली चलो, , , Chalo Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

चलो दिल्ली चलो, , , Chalo

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चलो दिल्ली

शुक्रवार, २० जुलाई २०१८

ये क्या हो गया है?
सब की बुद्धि पे ताला लग गया है
मेरा देश कहाँ खड़ा है आज?
देश के लोग कब आएँगे बाज।

हमारे ही पाँव पर कुल्हाड़ी मार रहे है
अपनी कबर खुद खोद रहे है
दुश्मनो को रास्ता दिखा रहे है
अपने घर के पीछे के दरवाजे से आनेकी दावत दे रहे है।

देश में ही दुश्मन बैठे हुए है
किसी ताक में लगे हुए है
मौका नहीं मिलता वार करने का
देश खड़ा है उनको सबक सिखाने को।

उनकी मति मारी गई है
सब की सब टीम हार गई है
अब तो जो मिले वो ले लेना है
बाकि देश के लिए नहीं है कुछ लेना और देना

ख़ुर्शी का मोह बहुत है
वापस कब मिलेगा उसका इंतजार लगा हुआ है
ओर नहीं लगता मौक़ा शेखचल्ली को
सब कहते है चलो दिल्ली चलो दिल्ली।

हसमुख अमथालाल मेहता

चलो दिल्ली चलो, , , Chalo
Friday, July 20, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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ख़ुर्शी का मोह बहुत है वापस कब मिलेगा उसका इंतजार लगा हुआ है ओर नहीं लगता मौक़ा शेखचल्ली को सब कहते है चलो दिल्ली चलो दिल्ली। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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