मन चंगा.. Changa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मन चंगा.. Changa

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मन चंगा
मंगलवार, १४ जुलाई २०२०

मन चंगा
मंगलवार, १४ जुलाई २०२०

मुझे जन्नत नहीं चाहिए
आप भी मन्नत जरूर रखिए
जब सारा जहाँ खुशनसीब मेहसुस करता है
तो हम सब का भी फर्ज बनता है।

जन्नत में जाकर क्या करोगे?
क्या हमें काम करना पसंद नहीं?
क्या प्रभु का नाम लेना पसंद नहीं?
संसार मे रहकर ही यह संभव है

जन्नत यहां ही बनाइये
भाईचारा हमेशा बढ़ाइए
प्रेम ही हमारा धर्म है
फर्ज ही हमारा कर्म है।

देश को बचाइए
और अपना धर्म निभाइये
देश ही धर्म ओर देश ही इमान
हम तो है यहां सिर्फ मेहमान।

मन चंगा तो कथरोट मे गंगा
कपडे के पीछे सब नंगा
हम क्यों लेते है पंगा?
करे पावन मन और साफ़ करे मनगंगा

हसमुख मेहता

मन चंगा.. Changa
Tuesday, July 14, 2020
Topic(s) of this poem: poem
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मन चंगा तो कथरोट मे गंगा कपडे के पीछे सब नंगा हम क्यों लेते है पंगा? करे पावन मन और साफ़ करे मनगंगा हसमुख मेहता Hasmukh Amathalal

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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