चौकीदार... Chaukidaar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

चौकीदार... Chaukidaar

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चौकीदार
मंगलवार, १८ मार्च २०१९

मे ही हु चौकीदार
रहो तुम खबरदार
ना खाऊंगा और नाहीं खाने दूंगा
बेईमानो को सलाखो के पीछे पहुंचा दूंगा

ना ये रामभक्त है और नाही शिवभक्त '
इनके हाथ है रक्तरंजित
पूरा देश भुगत रहा इनकी करतूतों को
क्या झुठला सकते है इन सबूतों को?

देश सुरक्षित और प्रगति की राहपर
क्यों ना बने हम सब राहबर?
समज ले दुश्मन उसपार?
इस बार तो हो बस आरपार।

सब ठग मिले एक चौराये पर
चिंता सताये चेहरे पर!
कही के नहीं रहेंग हम सब?
भंडा फुट जाएगा अब।

हम तो गरीबी सह लेंगे?
अब की बार क्या सिख लोगे?
कभी जनोई पहन लेंगे तो कभी मंदिर में घंटी बजा देंगे
बोलने में क्या हर्ज़ है, सत्ता में आने पर खैरात बाँट देंगे।

रहना सब बन के प्रहरी
कोई ना घुस जाय देश बाहरी
हमारी ताकत, हमारा संकल्प
कर देंगे हम देश का कायाकल्प।

हसमुख मेहता

चौकीदार... Chaukidaar
Monday, March 18, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 March 2019

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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