दरार... Daraar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दरार... Daraar

Rating: 5.0

दरार
मंगलवार, ४ दिसम्बर २०१८

कभी ऐसा भी मौक़ा आता है
किसी से मदद की जरुरत होती है
अच्छे से अच्छे लोग भी कतराते है
ना नहीं कह सकते, इसीलिए बात को टाल देते है।

आजकल माहौल कुछ ऐसा ही है
आदमी लेने को तो उत्साही रहता है
पर वापस करने में कन्नी काट लेता है
और ना देने पड़े इसलिए इसका इलाज ढूंढता है।

उनके पास अजीब की करामात होती है
उनकी वाणी मीठी और लुभावनी होती है
अच्छा अच्छा आदमी भी उनकी लपेटमें आ जाता है
सम्बन्ध के साथ साथ पैसा भी खो देता है।

एकबार मना करो तो उसको दुःख तो लगता है
पर वो कुछ देर के लिए ही होता है
एकबार उसको बहुत बुरा लगता है
पर सम्बन्ध अच्छा बना रहता है।

सम्बन्ध में मधुरता बनी रेहनी चाहिए
उस से किसी भी तरह से कमी नहीं माननी चाहिए
एक दूसरे के समय को देखकर मदद करनी चाहिए
पर उतनी भी नहीं की सम्बन्ध में दरार आ जाए।

हसमुख मेहता

दरार... Daraar
Tuesday, December 4, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 04 December 2018

Wah wah kya baat hai, Bahut khoob kaha hai aapne.10+++

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 04 December 2018

सम्बन्ध में मधुरता बनी रेहनी चाहिए उस से किसी भी तरह से कमी नहीं माननी चाहिए एक दूसरे के समय को देखकर मदद करनी चाहिए पर उतनी भी नहीं की सम्बन्ध में दरार आ जाए। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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