देखना है.... Dekhnaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

देखना है.... Dekhnaa

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देखना है
बुधवार, १० अक्टूबर २०१८

सुन सको तो सुन लो
गरीब की आवाज को पहचानो
उसके दुःख दर्द की पररख रखो
कभी साथ रहकर गरीबी का मजा तो चखो।

देखना है, गरीबी का मजाक ना हो
हर किसी को पसंदगी का इजहार हो
किसी को कुछ कह देने से जिंदगी कट नहीं जाती
किसी की भद्दी मजाक हमें समज नहीं आती।

मानवता हमारा मूल धर्म है
आदमी अपना अपना कर्म करता रहता है
पर जहाँ मानव सेवा की बात आती है
सब के मन में ये बात घर कर जाती है।

आजकल मानवस्वभाव में परिवर्तन आया है
कुदरती आपदा ने सब को बहुत सताया है
अच्छे खातेपीते लोग उसका शिकार हए है
गरीब के साथ पंगत में बैठकर खाना खाना पड रहा है।

देश पर आफत ही आफत है
कुदरत से सबको शिकायत है
गरीब का जीना दूभर हो गया है
आमिर का भी हाल बद से बदतर हो गया है।

हसमुख अमथालाल मेहता

देखना है.... Dekhnaa
Wednesday, October 10, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 10 October 2018

आजकल मानवस्वभाव में परिवर्तन आया है कुदरती आपदा ने सब को बहुत सताया है अच्छे खातेपीते लोग उसका शिकार हए है गरीब के साथ पंगत में बैठकर खाना खाना पड रहा है। देश पर आफत ही आफत है कुदरत से सबको शिकायत है गरीब का जीना दूभर हो गया है आमिर का भी हाल बद से बदतर हो गया है। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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