देखता हूँ निगाहों से
कभी कभी तुम सवेरे आया करो
मेरे दिल को बातों से बहलाया करो
चेहरा है अति सुन्दर और मोहक
हमको भी कभी दिल से दिखाया करो।
उपवन की तुम शान हो
आभा का भी तुम गुमान हो
में फुला ना समाऊं देख देखकर
कभी मेरे दिल को छुआ भी करो।
चाँद हो तुम मेरे दिल के
रात को यु शरमाया न करो
में भी ठेहरा बुद्धू अनाडी
सोचा कभी ना आगे पिछाड़ी।
ऋतुए भी बदलती है अपना मिजाज
तुम क्यों बने फिरते हो जालसाज?
मेरे दिलको यु ही फुसलाया ना करो
बहुत हो गया अब और तड़पाया ना करो।
सर डोल जाता है ठंडी सी हवा में
मन मुग्ध हो जाता है सिर्फ दिखने से
ऐसी कैसी खुस्भु है प्रसारी?
में बेचेंन बन बैठा हूँ अलगारी।
मेरा प्यार कोई बनावट नहीं
धोखे से लिपटा पुलिंदा नहीं
में कैसे मनाउ बातों से!
अब ऊब गया हूँ रातों से।
कहाँ रखु सर अपना में?
कैसे सजाऊँ सपना में?
तुम तो आती हो हवा का झोका बनकर
में खो जाता हूँ आपका होकर।
अब खो जानेकी इजाजत नहीं है
बस रेहने दो, बची कुछ इज्जत है
करूंगा जतन में अपने दिल से
आप भी कह दो ना सच्चे मन से।
दिल का इशारा बस अब काफी है
बाकि हसरत के लिए कोरी माफ़ी है
में इंसान एक गभरू बालक हूँ
देखता हूँ निगाहों से पर नालायक नहीं हूँ
मेरी चिता को आग लगाएंगे धीर कानमे कहते जाएंगे भला मानस, पर कुछ कर नही पाया जाना तो सब को है पर जान नहीं पाया
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Aasha Sharma Bahut shaandaar likha thank you Hasmukh Mehta ji