( नोटबंदी)
जिधर देखता हूॅ अंधेरा है काला।
ग़रीबों की सारी कमाई पे ताला।
ख़बर है हूकुमत का है ये घोटाला।
अमीरों का घर है ख़ुशी से ऊजाला।।
ज़रा पूछये जा के ऊन बे बसों से।
वो गाॅओं शहर के, सभी बे कसों से।।
कई दिन से बिन काम बैठा है ख़ाली।
नहीं पास पैसा , बना है सवाली।।
ये ज़ुल्मों सितम है , मिला न निवाला।।।
ग़रीबों की सारी कमाई पे ताला।।।।
ये माॅ कह रही है , है बेटी की शादी।
न सोना ख़रीदा , न ले पाई चाॅदी।।
तड़पती है हर शौक़ , हसरत हमारी ।
न आया वो नौशा , न आई बाराती।।।
बहन कह रही है, ये कहती है ख़ाला ।।।
ग़रीबों की सारी कमाई पे ताला।।।।।
न है दूध घर में , न कोई दवाई।
ये कहती है जनता , है कैसी लड़ाई।।
अजब सी है आफत , ग़ज़ब सा तमाशा।
कहीं मुशकिलें हैं , कहीं है हताशा।।
ज़बाॅ कह रही है , ये दिल का है नाला।।
ग़रीबो की सारी कमाई पे ताला।।।।
रचना एवं लेख: - अंजुम फिरदौसी
(ग्रा+पो: -अलीनगर, दरभंगा, बिहार)
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem