धन्य हो गई... Dhany Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

धन्य हो गई... Dhany

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धन्य हो गई
गुरुवार, ६ सितम्बर २०१८

होने लगे चर्चे
और बंट ने लगे पर्चे
लोगों को रास नहीं आया
तो उन्होंने ये रास्ता अपनाया।

पर कोई भी हथकंडा काम नहीं आया
मैंने सबको बाहर का रास्ता दिखाया
उनकी दाल नहीं गली तो मेरे पे झुलम ढ़ाया
मेरे प्रेम पर उनकी पड गई छाया।

क्या काले आदमी में रखा है? ना शक्ल है और सूरत है
क्या देखकर उसने अपनाया है?
बाद में पछताने का समय आएगा
तब रोते नहीं बनेगा!

में चलित नहीं हुई
अपने इरादे में कायम रही
मैंने उनमे कुछ अवश्य देखा है
उनकी उदारता और सहजपन को महसूस किया है।

गोरा, काला और दुसरा भेद मैं नहीं मानती
हाँ, सच्चे प्रेम को जरूर सराहती
प्रेम में कभीकभी हो जाती है गलती
पर अपने आप को कभी नहीं कोसती।

ईश्वर की यह सराहनीय देन है
न्याता तो पूर्व जनम की लेनदेन है
जिसने भी पाया, वो धन्य हो गया
संसारसागर सुखरूप से तैर गया।

हसमुख अमथालाल मेहता

धन्य हो गई... Dhany
Thursday, September 6, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 06 September 2018

ईश्वर की यह सराहनीय देन है न्याता तो पूर्व जनम की लेनदेन है जिसने भी पाया, वो धन्य हो गया संसारसागर सुखरूप से तैर गया। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 September 2018

ईश्वर की यह सराहनीय देन है न्याता तो पूर्व जनम की लेनदेन है जिसने भी पाया, वो धन्य हो गया संसारसागर सुखरूप से तैर गया। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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