धन्य हो जाते है Dhanya Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

धन्य हो जाते है Dhanya

धन्य हो जाते है

कुत्ते को रोटी खिलाओ
गाय को पानी पिलाओ
राहगीर के लिए पानी और छाँव की व्यस्था करो
सही मायनो में आप अपने भीतर में दया का संचार करो।

के नकली लोग आपके जीवन में आएँगे
जूठ को सच बनाकर आपपर हावी हो जाएंगे
अपनी कहानी को इस तरह पेश करेंगे की
आप जल्दी से विश्वास कर लेंगे ही।

ना आपके बस में हैं ना लोगों के
हम सब बने है एक ही मिटटी के
हमारे पास भी वोही नुस्खे है
जो सबने इस्तेमाल के लिए सम्हाल रखे है।

जो सफल हो गया वो ही चलाक
बाकि सब देखते रह जाएंगे बेबाक
कोसेंगे यूँ कहकर की 'आजकल सच्चे का ज़माना ही नहीं '
पर असल में अपनी नाकामी बताते नहीं।

ये कारवाँ रुकने वाला नहीं
हर कोई अपनी हरकतों से बाज आने वाले नहीं
जो रुक गया वो मर गया
जो बढ़ गया वो जीत ग़या।

ये संसार है अजीबो गरीब
दोस्त और दुश्मन रहते है करीब
मौके की तलाश है सब को
सब को अमिर बनना है रात ही रात को।

कुछ ही लोग 'खुदाई' को जानते है
अपने वजूद को भी सही मानते है
'जो है पास वो ही सही'समझकर ध्यानमग्न हो जाते है
दे सकते है वो दे कर अपने आप में धन्य हो जाते है।

धन्य हो जाते है Dhanya
Wednesday, February 15, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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