दोगलापन.. Doglapan Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दोगलापन.. Doglapan

दोगलापन

लोग कितना दोगलापन दिखा रहे है
जहाँ भी मौक़ा मिला, अपना हाथ साफ़ कर देते है
लोगो में उनके प्रति अखंड विश्वास होताहै
ये सब लोगउनके कामके प्रति आभार प्रकट करते है।

प्रजा के सामने जब उनका चेहरा सामने आता है
तो दिल में ग्लानि भर देता है
प्रजा सत्य का सामनानहीं कर पाती है
पर यह तरीक़े का ढंग हजम नहीं कर पाती है।

हमने बड़े बड़े कारनामे देखे
कई बड़े सर को धरती पर गिरते देखा
कोन्ग्रेस वैसे भी बदनाम थी रिश्वतखोरी के बारे में
पर वो व्यस्त रहे उनको कप बचाने में।

उनका दलित और मुस्लिमकार्ड फेल हो गया
जनता ने उन सबकोसबक सीखा दिया
नाही सत्ता से बेदखल हो गए
पर अपना वजूद भी मिटा गए।

उन्होंने दुसरा तरिका ढूंढा
सरकार पे बहुत तहमत बढे
हर चीज का सार्वजनीक बहिष्कार करने का मन बनाया
संसद का कामकाज थप करके दिखाया।

आजकल बड़ी गन्दी चाल बना रहे है
अपनी पुरानी चाल को नया अंजाम दे रहे है
दलितों और पटेलो को अनामत का लॉलीपोप दे रहे है
अपने हाईकमाण्ड को पूछकर कुछ निष्कर्ष देंगे।

उनका प्लान अब चुनाव तक ही सिमित है
हार का सामना होगा तो गठबंधन टूटना ही है
फिर सब चीजों का लेखाजोखा होगा
किसी की टोपी किसी के सरपर पहनाना होगा।

दोगलापन.. Doglapan
Monday, November 13, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 13 November 2017

उनका प्लान अब चुनाव तक ही सिमित है हार का सामना होगा तो गठबंधन टूटना ही है फिर सब चीजों का लेखाजोखा होगा किसी की टोपी किसी के सरपर पहनाना होगा।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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