दोस्ती बस...Dosti Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दोस्ती बस...Dosti

Rating: 5.0

दोस्ती बस
शनिवार, १७ नवंबर २०१८

ये दुश्मनी बिच में कहाँ से आ गई
मुजेखामखा हैरान कर गई
न कभी सोचा ना कभी समजा
मन ने इतना ही सोचा "बस आगे बढ़ जा "

गैरो से हम दिली
बस हमें तो यही विरासत मिली
बस दिखाई खेलदिली
और बदले में अपने आप मिली।

दोस्ती बस जैसे दूध में साक़र मिल गई
दूध भी नहीं ढला और मीठा कर गई
अटूट सा बंधन बना गई
दिल में बस एक होकर समा गई।

बस एक ही प्रार्थना
कभी ना करना
नाही तो दिल दुखाना
और नाही खटाश ला देना।

प्रेम का रंग फीका ना पड जाए
दुश्मनी का जहर उसमे ना मिल जाए
दोस्ती की मस्ती कायम रहे
हम एक दूसरे से मिलते रहे।

खुदा ना करे खास्ता
प्रेम ना हो जाय सस्ता
मिलते रहे हम सदा
और निभाए अपना वादा।

हस्मुख अमथालाल मेहता

दोस्ती बस...Dosti
Saturday, November 17, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 17 November 2018

welcmem rosy bhanot Manage 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 November 2018

खुदा ना करे खास्ता प्रेम ना हो जाय सस्ता मिलते रहे हम सदा और निभाए अपना वादा। हस्मुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 November 2018

खुदा ना करे खास्ता प्रेम ना हो जाय सस्ता मिलते रहे हम सदा और निभाए अपना वादा। हस्मुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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