हे शरणागतवत्सल राम! Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे शरणागतवत्सल राम!

हे मिथिलाधिपनन्दिनि प्रियतमे, हे कौसल्या-सुखवर्धनम्।
हे राम रघुनंदन रघुपते, माम् नमस्कारम् स्वीकुरु॥


हे मिथिलाज-तनूज-वल्लभ, हे दशरथात्मज शोभन।
हे रघुवीर दया-सिन्धो, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥



हे सीतामनोहर माधव, हे जगतामधिप प्रिय।
हे राघव कमलनयन, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥




हे जनकात्मजा-हृदयान्तस्थ, हे करतलस्थित कोदण्ड।
हे खगपति-सपथसञ्चारिन्, माम् नमस्कारं
स्वीकुरु॥




हे शरणागतवत्सल राम, हे दीनजनार्तिहारण।
हे मुनिमनः प्रसादप्रद, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥






हे लङ्कानगरी-विनाशक, हे रावणसंहरणप्रख्य।
हे सुग्रीवसखा महौजस्, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥


हे भरतानुज प्रियारमण, हे लक्ष्मणानुज-शोभित।
हे जानकीं हृदि धारयन्, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥





हे पुण्डरीकाक्ष महायशः, हे त्रैलोक्यशरण्यभूत।
हे भक्तक्लेश-निवारक, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥




हे कपिकुलपतिसमाश्रित, हे वानरमार्ग-दर्शक।
हे सीतान्वेषण-प्रेरक, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥






.हे अयोध्याधिप मङ्गलमय, हे दशमुख-दर्पभंजन।
हे धर्ममूर्ते रघुकुलतिलक, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥



हे रामचन्द्र दिव्यतेज, हे शरण्य पापभञ्जन।
हे नित्यानन्द निरञ्जन, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥



हे जनकतनयाप्राणनाथ, हे सकलजगदेकनाथ।
हे सुरासुरनम्यपाद, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥






हे निर्भय दीनरक्षणक, हे महाकरुणासागर।
हे शरणागत-वत्सल, माम् नमस्कारं स्वीकुरु|






हे विप्रप्रिय धर्मसंरक्षक, हे मुनिमनस्संवलक।
हे जनन्याः कौशल्याया नन्दन, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥




हे तपसा तप्तसुवर्णाभ, हे शुभदर्श प्रजाप्रिय।
हे शान्तचित्त नवीनार्च्य, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥






हे सीताशोकनिवारक, हे लोकत्रयपालक।
हे सौमित्रिसहित सन्तुष्ट, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥



हे रघुकुलरत्न शोभायुत, हे पर्वतराज-कन्यापत।
हे भक्ताभीष्टवरद प्रभो, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥





हे सहस्रनामभूषित, हे तुलसीप्रिय कीर्तित।
हे विश्वरक्षक राम विभो, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥


हे देवेश देवराजवत्सल, हे मनुजविग्रह दयाघन।
हे मायामयलोकनायक, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥






हे सूर्यवंशविभूषण, हे साक्षात् धर्मस्निग्धतनु।
हे कल्याणगुणगणनिधे, माम् नमस्कारं स्वीकुरु॥



हे जगज्जन मास्यप्रभामय, हे परमानन्दरूपक।
हे भक्तजनहितकार्यकारी, माम् नमस्कारं स्वीकुरु




हे मिथिलाधिपनन्दिनि रम्ये, हे कौसल्यासुखवर्धन।
हे रामा रघुनाथ रघुबर, माम् नमः स्वीकुरुष्व विभो।


हे जनकात्मजमानसमान्य, हे दशरथात्मज विभु।
हे राघव रघुवंशनायक, माम् नमः स्वीकुरुष्व हर।











हे सीताशरणागतगति, हे कौसल्याः सुतः शुभः।
हे राम रघुपुङ्गव शूर, माम् नमः स्वीकुरुष्व द्विज।



हे लक्ष्मणप्रिय सौम्यशिल, हे भरतानुजनायक।
हे राम भक्तिप्रियवरद, माम् नमः स्वीकुरुष्व श्रुत।

5
हे रावणान्तविचक्षण सत्यम्, हे हनुमत्सहयोगद।
हे राम सीताप्रिय स्वामी, माम् नमः स्वीकुरुष्व गुरो।


हे अयोध्याध्यक्ष धर्मशील, हे दशरथात्मज विशुद्ध।
हे राम रघुकुलतिलक, माम् नमः स्वीकुरुष्व कृप।

7
हे शरणागतवात्सल्यसिन्धो, हे जनकात्मजारमण।
हे कालतिग रघुवीर विभु, माम् नमः स्वीकुरुष्व मुत


हे पाञ्चजन्यतुल्यवीर्य, हे विश्वपालक दीनवत्सल
हे राम दीनार्तिहारी, माम् नमः स्वीकुरुष्व गीष्प




हे रघुकुलरत्नदीप्तिपूर्ण, हे सीताशोकहारी विभु।
हे राम वरद भक्तबन्धु, माम् नमः स्वीकुरुष्व सुख।



हे धर्मज्ञानप्रकाशस्वरूप, हे सर्वलोकहितेण।
हे राम रघुनाथ वेदान्त, माम् नमः स्वीकुरुष्व त्वम्।


हे जानकीप्रिय सौम्यस्मित, हे भरतानन्ददाता।
हे मधुर धीर महासत्त्व, माम् नमः स्वीकुरुष्व शम।





हे मुनिसेवक धर्मज्ञ, हे कपिसेना प्रबन्धक।
हे राम सीताप्रिय प्रभो, माम् नमः स्वीकुरुष्व हृद्।


हे रघुकुलभीषण शौर्यशुचि, हे रावणान्तक तेजस्वी।
हे सर्वेश्वर भक्तवत्सल, माम् नमः स्वीकुरुष्व नय।







हे दशरथपतिस्नेहपूर्ण, हे माता कौसल्यानन्दन।
हे श्रीराम लोकनायक, माम् नमः स्वीकुरुष्व सदा।


हे सीतानाथ करुणाकान्त, हे धर्मचेष्टामूल।
हे राम रघुवंशप्रिया, माम् नमः स्वीकुरुष्व निधि।








हे त्रेतायुगसम्भूत पावन, हे पितृभक्तिनिष्णात।
हे राम लोकहितकारी, माम् नमः स्वीकुरुष्व विभु।


हे विश्वेश जनार्दन साक्षी, हे कपिसेना-प्रभुः।
हे रघुकुलमणि राम विभु, माम् नमः स्वीकुरुष्व माम।






हे रूपवान् सद्गुणसागर, हे प्रत्यहं भक्ताब्धि।
हे राम धैर्यधाम विभु, माम् नमः स्वीकुरुष्व दय।



हे सूर्यवंशसमुत्पन्न शोभा, हे सीतापालक नाथ।
हे राम रघुवंशकुमार, माम् नमः स्वीकुरुष्व च।













हे विजयश्रीसंपन्न राम, हे भक्तजनसुखदा।
हे राघव कल्याणमूर्ति, माम् नमः स्वीकुरुष्वस्तु।

#############################

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
PRAYER
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success