दुहाई देती रहूंगी . Duhaai Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दुहाई देती रहूंगी . Duhaai

दुहाई देती रहूंगी
शनिवार, ५ जनवरी २०१९

जीवन है मझधार
बीच में दरिया है अपार
मुझे जाना है उसपार
नैया मेरी कैसे होगी पार?

मेरा उत्साह नहीं है कम
गीर जाने का नही है गम
आगे बढ़ते ही जाना है हरदम
तुम साथ दे देना हमदम।

जीवन का हैं अजीबोगरीब खेल
आदमी का और किस्मत का भी होता मेल
कोई गरीबी से झुझता
तो कोई अमीरी में झूमता।

पर मुझे दिक्कते है मंजुर
निपटने को रहे हमेशा आतुर
मिलना है तो मिलके रहेगा
खोने का डर कभी ना सताएगा।

यही है मेरा फलसफा
मुझे नहीं डरा पाता किसी का गुस्सा
में शांति से सांस लेता रहूंगा
दूसरों के लिए भी दुहाई देती रहूंगी।

हसमुख मेहता

दुहाई देती रहूंगी . Duhaai
Saturday, January 5, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 January 2019

यही है मेरा फलसफा मुझे नहीं डरा पाता किसी का गुस्सा में शांति से सांस लेता रहूंगा दूसरों के लिए भी दुहाई देती रहूंगी। हसमुख मेहता

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success