दुरी ना रखो.....Duri Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दुरी ना रखो.....Duri

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दुरी ना रखो
बुधवार, १९ सितम्बर २०१८

हम से दुरी ना रखो
दोस्ती को नजदीक से परखो
यह तो ईश्वर को देन है
इस से मिलता चेन है।

प्रेम से बनता सेतु
बर आ जाता अपना हेतु
जीवन की मंझिल पास आ जाती
दूरियां नजदीकियां हो जाती।

इश्क को बताता नहीं
और मन में भी रख पाता नहीं
प्रेम इम्तेहान लेता है
फिर साफ़ शब्दों में कहता है।

पतझड़ में वो उझडता है
सावन में फिर बहार ला देता है
वादा क्या है तो मुकरना नहीं है
सावन चला जाय तो फिर रोना नहीं है।

प्यार को आजतक कोई नहीं समझा
बस उसमे रह गया उलझा
होता रहता है जीवन में हादसा
बस हम लेते है उसे सहसा।

प्यार करने वाले नहीं सोचते
बस मन ही मन सोचते
जुबान को अपनी नहीं खोलते
बस मन ही मन उसका भला ही सोचते।

हसमुख अमथालाल मेहता

दुरी ना रखो.....Duri
Wednesday, September 19, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 19 September 2018

Sanjay Pansare 1 Manage Like · Reply · 6h

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Mehta Hasmukh Amathalal 19 September 2018

welcome S.r. Chandrslekha 63 mutual friends Message

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Mehta Hasmukh Amathalal 19 September 2018

welcome Tarun H. Mehta 87 mutual friends 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 19 September 2018

प्यार करने वाले नहीं सोचते बस मन ही मन सोचते जुबान को अपनी नहीं खोलते बस मन ही मन उसका भला ही सोचते। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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