उदासी है कैसी जो छाई हुई है
यहां रूह हर एक सताई हुई है
नही जलते दीपक यहां दिल है जलते
ये बुझते हुए मन नही अब संवरते
ये किस्से किसे कोई जाकर सुनाये
किसे आज फिर ये कहानी बतायें
क्या मरने के दुनिया में कम थे बहाने
जो चले आज फिर से बम एटम बनाने
कहां खो गये है जहां के सयाने
कहां सो गये है अमन के दीवाने
कहीं कोई गांधी क्यों पैदा ना होता
यहां बुद्ध-नानक का सौदा है होता
हे इंसा के दुश्मन जरा होश में आ
ओ हैवानियत तू न अब जोश में आ
चलो मिल के दुनिया को जन्नत बना दें
फिर अपने दिलों में मुहब्बत बसा लें ।
अभय शर्मा 30 सितंबर /1 अक्टूबर 2009
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