एक बहाना है... Ek Bahanaa Hai Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

एक बहाना है... Ek Bahanaa Hai

एक बहाना है

हम यूँही लुट जाएंगे
यदि देश के राजकारणी सोते रहेँगे
आपस में झगड़ा करके देश की शान में गुस्ताखी करते रहेंगे
पर यह नहीं सोचेंगे की देश अधोगति की और जाता रहेगा

एक राजकारणी देश चलाने में मदद मांग रहा
मानो वह अनपढ़ और भिलह मांग रहा
अनुशाशनहीनता का नाम तक उसने मिटा डाला
अपनी साख ओर विधानसभा का अपमान कर डाला।

देश का संविधान है सर्वोपरि
नहीं कोई आदमी ओर फॅमिली
हो सकता है उन्होंने ज्यादा बलिदान दिया हो
पर कब तक उस विधान को दोहराना हो।

देश जल रहा और ये लोग उसमे घी डाल रहे
पूरी कवायत के दौरान घसघसाट सोते रहे
अब ये बताने की कोशिश करेंगे की वो गहन सोच में थे
लोगो के बारे मे शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे।

पैसा खुले आम बँट रहा है
जहाँ चाहो दंगा हो रहा है
लोगो को बहकाया जा रहा है
देश जाती के राजकारण में फिर से उलझ रहा है.

मत करो ये खानाख़राबी
देश में भरे पड़े है शराबी
कौन क्या बोल रहा पता नहीं
देश का सुकान अच्छा आदमी समाल पाता नहीं।

हमारे आपके बिचार भिन्न हो सकते है
आपकी कथनी और करनी अलग हो सकती है
पर देश अपना है और उसे चलाना है
मज़बूरी दिखाना तो एक बहाना है।

एक बहाना है... Ek Bahanaa Hai
Friday, July 22, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

हमारे आपके बिचार भिन्न हो सकते है आपकी कथनी और करनी अलग हो सकती है पर देश अपना है और उसे चलाना है मज़बूरी दिखाना तो एक बहाना है।

0 0 Reply

हमारे आपके बिचार भिन्न हो सकते है आपकी कथनी और करनी अलग हो सकती है पर देश अपना है और उसे चलाना है मज़बूरी दिखाना तो एक बहाना है।

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success