एक ही इशारे Ek Hi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

एक ही इशारे Ek Hi

एक ही इशारे

मिलता नहीं साथ हुस्न वालों का
बस दिल जल जाता है देखने वालों का
नजर तो वो नीचे ही रखते है
अंदाज निराला और अनुत्तर ही रहते है।

कुछ गलती से पुछ लिया तो शामत सहमत आ जाती है
शब्दो के बाण से मानो क़यामत नजर आ जाती है
बस कोई नहीं पूछ सकता दिल के हालबेहाल!
पर खुद रहते है हंसी के खजाने से मालामाल।

लड्डू मन में जरूर फुट रहे है
कहने को कुछ लब्ज़ एकजुट कर रहे है
हो सकता है कल ही कह दे
मन की बात मन में ही रख दे।

ना करो मनमानी अपने दिल से
कह भी दो आज खुले दिल से
हम भी बेतहाशा उस चीज़ के इन्तेजार में है
बस इलाज आपके इजहार में ही है।

इतना तो मालुम हो गया
बस कहते कहते चेहरा मासूम सा हो गया
कौन करता है फिकर आजके ज़माने में?
हसीना के एक ही इशारे तैयार रहते है मर मिटने में।

एक ही इशारे  Ek Hi
Tuesday, December 6, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 06 December 2016

R K Khandhar RK Excellent.ji. today by hasmukh amathalal

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 December 2016

welcome r k khandhar Unlike · Reply · 1 · Just now 53 minutes ago

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 December 2016

xR K Khandhar RK Beautiful pic n wording ji. 52 minutes ago

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 December 2016

इतना तो मालुम हो गया बस कहते कहते चेहरा मासूम सा हो गया कौन करता है फिकर आजके ज़माने में? हसीना के एक ही इशारे तैयार रहते है मर मिटने में।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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