ऐसी प्रतीति हरदम
ज़िंदगी का सच मेरे सामने है
सभी तो मेरे अपने है
कोई पराया नहीं लगता
बस मुझे मिलना अच्छा लगता।
दिल को जैसे सुकून मिलता है
दिल कॊ आनंद होता है जब कोई गले मिलता है
ना देखो अपने चहेते को तो मन रोता है
उदासी में मगन ओर परेशान हो जाता है।
चन्दन भी इतनी शान्ति नहीं देता
जितना आगाह उसका हँसी चेहरा देता
पता नहीं ये कैसा नग्न सत्य है!
जो मेरे सामने प्रत्यक्ष्य है।
शांति के लिए दूर चले जाना
अपने आप को योगी कहलाना
फिर भी शान्तो कोसो दूर पाना
ये कैसी है विडम्बना?
मुझे लगा मेरे स्वाभाव में ही खोट है
दिल की गहराई में उसकी चोट है
में उस क्षति को दूर नहीं कर पाया हूँ
अपने आपको बस पराया ही समजा हूँ।
मेरा प्रयास अब दिल से होगा
किसी का दिल कभी भी नहीं दुखेगा
मेरा हर लब्ज़ सच की झांकी कराएगा
मानव हूँ ऐसी प्रतीति हरदम कराएगा।
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मेरा प्रयास अब दिल से होगा किसी का दिल कभी भी नहीं दुखेगा मेरा हर लब्ज़ सच की झांकी कराएगा मानव हूँ ऐसी प्रतीति हरदम कराएगा।