देख-देख के मुझको खुश होती थी माँ!
मुझे परेशानी हो तो हमेशा रोती थी माँ! !
उसके दिल मे मेरे लिए चाहत बहुत थी!
मुझे खुश देखके उसे, राहत बहुत थी! !
उस रोज़ उसके चेहरे को देखा गौर से!
उन बातों को वो कैसे कहती और से! !
वैसे तो मैं उसकी आँखों का तारा था!
कहने को उसके बुढ़ापे का सहारा था! !
कितने सपने आँखों मे बुने थे उसने!
मेरे लिए कितने ताने सुने थे उसने! !
उसके लिए कभी वक़्त निकाल ना पाया!
उसके बुढ़ापे मे कभी काम ना आया! !
मेरी माँ तो मुझको कहती थी हीरा!
मगर मैं निकला फक़त फक्कड़ कबीरा! !
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem