Hope (आशा) Poem by Pawan Kumar Bharti

Hope (आशा)

Rating: 5.0


जीवन में यदि रही ना आशा,
हटेंगें कैसे ये धुँध कुहासा!
उम्मीद की लौ जला के रखना,
छाई हो भले घोर निराशा! !
पत्थर कैसे हीरा बनता,
कैसे कुंदन बनता सोना!
लगन लगी हो मन में तो,
सब संभव हो जाता होना! !
सूरज मेघ बना लेता है,
सोख के पानी ज़रा ज़रा सा! !
जीवन में.....
एक दिन सूरज ऐसे निकलेगा,
गम के बादल छट जाएँगे!
मंज़िल तुझको मिल जाएगी,
तेरे भी तो दिन आएँगे! !
समय की करवट किसने जानी,
जाने पलट जाए कब पासा! !
जीवन में......

Friday, May 16, 2014
Topic(s) of this poem: hope
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Its about the hope. One should be hopefull at any stage of life, time may change anytime.
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success