फलसफा मालूम ही नहीं Falsufa Hame Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

फलसफा मालूम ही नहीं Falsufa Hame

फलसफा मालूम ही नहीं

मेरा जीना हराम हो गया है
वक्त पूरा बर्बाद हो गया है
में संझना चाहता हूँ पर वो समझते ही नहीं
आकाश से बादल बरसते ही नहीं।

में ज्यादा पढ़ा नहीं
आगे भी बढ़ा नहीं
पर अपने वचन से कभी मुकरा नहीं
किसी को बली का बकरा बनाया नहीं।

फिर भी संदेह है उनको मुझ पर
चाहत का नाज़ तो है रीझ जाने पर
पर जान बख्शते नहीं
सामने आने पर बात करते नहीं।

उनके ख़याल अपने है
हम्रारे ख़याल पुराने है
पर हम भी तो जमाने से है
हजार तरीके मनाने के है।

'आरे मान भी जाओ' हमने कह ही दिया
बातो बातो में हवा का रुख ही बदल दिया
वो कड़वे घूंट पीकर बदला लेना चाहते थे
हम भी उनको सताना नहीं चाहते थे।

नूरा कुस्ती हम जानते नहींृ
रूठे हुए को मनाना हमें आता नहीं ृ
पर एक जरूर जानते है की रूठना बहुत आसान है
मनाना बस की बात नहीं और बहुत ही कठिन है।

बदलते है वो जो ईश्क़ करना ही नहीं जानते
प्यार के झख्म में मरहम लगाना नहीं जानते
वर्ना प्यार का पूरा समंदर यहाँ है
पर हमें डुबकी लगाने का फलसफा मालूम ही नहीं

फलसफा मालूम ही नहीं Falsufa Hame
Saturday, May 14, 2016
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xwelcome Henry Shamwama Unlike · Reply · 1 · Just now 15 May

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xAngel Thys Wow Like · Reply · 9 hrs 15 May

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xa welcome Jyotsna Paras Raheja Unlike · Reply · 1 · Just now 15 May

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xwelcome Jayotsna Singh Unlike · Reply · 1 · Just now 15 May

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welcome Chandraprakash Kushwah Unlike · Reply · 1 · Just now 15 May

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er; come subroto bhatacharjee Unlike · Reply · 1 · Just now

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welcoem Yusof and DK Shekhar Chaurasiya Unlike · Reply · 1 · Just now 15 May

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x welcome 3Sayda Layla, Unlike · Reply · 1 · 1 min 15 May

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xwellcome Glaiza Joy Cuizon Unlike · Reply · 1 · Just now 15 May

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welcome ali ali Unlike · Reply · 1 · Just now 15 May

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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