Fel Ho Gaye Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

Fel Ho Gaye

फेल हो गए

ना करे रोश हम पर
हार कर भी जा चुके है ऊपर
ना करो और सितम
अब तो पूछ लो प्रीतम?

पूछो ना कैसे हुआ यह सब?
बस दिल दे चुके हम तो अब
ना दिन का पता है ना रात का
बस हम तो है अधीन उस बात का।

दिल एक ही बात कह रहा
वो किसी की ना सुन रहा
खाना भी लेते हैं तो हिचकी आती है
सोते है तो याद भी उनकी ही आती है।

ना सांस पर हमें विश्वास है
और नाही जिंदगी की अंतिम आस है
पास है तो उनकी यादे और कहे गए लब्ज़
बो सब रखे हैं ताजा बहकर खून बस इसी नब्ज़ के सहारे।

वो कहते तो जन्नत का नजारा दे सकते थे
हमें आवारा बनाकर खुद इशारा दे सकते थे
पर वो तो सम्हल गए और हमें दिवानगी में धकेल गए
मानो हम ही प्रेम की परीक्षा में फेल हो गए।

Fel Ho Gaye
Wednesday, November 23, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 23 November 2016

वो कहते तो जन्नत का नजारा दे सकते थे हमें आवारा बनाकर खुद इशारा दे सकते थे पर वो तो सम्हल गए और हमें दिवानगी में धकेल गए मानो हम ही प्रेम की परीक्षा में फेल हो गए।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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