फिर क्यों ना सुधार लाए Fir Kyo Naa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

फिर क्यों ना सुधार लाए Fir Kyo Naa

फिर क्यों ना सुधार लाए?

जलना
फिर उन्माद में उछलना
आत्मा को छलना
इसी की तो है हमें कामना?

युगो बीत गए
हम वहीँ रह गए
संत समागम सब बेकार
हम ठेहरे पाषाण तज़ुर्बेकार।

हमें क्यों हो किसीकी दरकार?
हम करते रहँगे दरकिनार
लोग ही बिलखते ना रह जाय रास्तेपर
हम तो चलते जाएंगे बिना परवाह रातभर।

ना हमें कोई सरोकार है
ना हीं करना है व्यक्त आभार
हम मस्त है अपने जीवन में
मौज ही मौजा है इस उपवन में।

वो जीवन ही क्या जिस में सुधार की गुंजाइश हो
अच्छे बन ने की कुछ नुमाइश हो
'अरे बन जाओ कुछ सुशील' की फरमाइश हो
हमें भी अब लगता है ईश की आजमाइश हो।

किसी की सुन लेना ही बेहतरी है
जीवन में कुछ तो हांसिल बात करनी है
वरना मर जाएंगे बिना कुछ करे
फिर क्यों ना सुधार लाए अपने जीवन में।

फिर क्यों ना सुधार लाए Fir Kyo Naa
Tuesday, December 6, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success