हे री गोरी! Girl Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे री गोरी! Girl

हे री गोरी! मति की भोरी, किया न अबतक स्नान।
लेकिन, सुमन सिर सजे तेरे, क्या मन उठा तूफान?
बाल सजे-गुथे, पुहुप शोमते, मानों कर लिया श्रृँगार,
लेकिन तेरी ग्रीवा में हार नहीं, किस का बनेगी उरहार।
सरोवर जल में जा तू समायी, जल में ढूँढ रही घनश्याम।
श्याम वण^ देखकर इसका, लगता मन, यहीं है बस श्याम।।
तेरा तो बदन पीत गौर है, री गोरी! , जल का वण^, है श्याम।
नभ रँग शोभा श्याम बनी, दोनों मिल बनेंगे हरित ललाम।।
तेरी दृग नजर, अधर मुस्कान, मधुर काया बारिधर को देखती।
हर एक अदा पर फिदा खुंदा, कभी -कभी नजर मचल पड़ती।।
अपना सुन्दर मुखड़ा बार-बार, देखती जल दर्पण मृदु मुस्कान।
'नवीन' घन जल सुमन बरसा रहा, पूरे हो गए दिल अरमान।।

Friday, March 17, 2017
Topic(s) of this poem: girl
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