हाथ पकड़कर... Haath Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

हाथ पकड़कर... Haath

हाथ पकड़कर
गुरुवार, २७ दिसंबर २0१८

तूफ़ान आए या ना आए
पर समज में तो कुछ आए
की माजरा क्या है?
प्यार व्यार क्या है?

साथ देने का तो वादा करते हो
पर मुकर भी तो जाते हो
बुलाने पर भी नहीं आते
ओर आते हो तो मुंह लटकाके आते।

हम अंदाजा नहीं लगा सकते
की तुम तैर भी सकते
या नहीं आगे बढ़ सकते
रोज रोज हमें यूँही भरोसा दिलाते।

जरुरी है जानना
और दिल को मनाना
हाथ तो पकड लेते हौ
पर छटपटा जाते हो।

थोडासा भरोसा हमें दिला दो
हमारे दिल को सुकून दे दो
तभी हम मानेंगे
और साथ चलने को तैयार होंगे।

हसमुख मेहता

हाथ पकड़कर... Haath
Wednesday, December 26, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 26 December 2018

थोडासा भरोसा हमें दिला दो हमारे दिल को सुकून दे दो तभी हम मानेंगे और साथ चलने को तैयार होंगे। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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