हम कहेंगे.. Ham Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

हम कहेंगे.. Ham

हम कहेंगे
शनिवार, १२ जनवरी २०१९

अब हम कहेंगे
और नेता सुनेंगे
बहुत कर दी उन्होंने मनमानी
अब वो सुनेंगे हमारी जुबानी।

पांच सालों में एक बार आते है
वचनों की सौगाद ले के आते है
"हम ये कर देंगे, हम वो कर देंगे"
सत्ता पे आते ही सब कुछ भूल जाते है।

"हम राजकारणी है, साधू नहीं है "
पर ये नहीं कहते, हम तक साधू है
काम हमारा वादे करना है
जितना बन पाए उतना काम करना है।

जिन का समय कौभांडो से भरपूर रहा
जिन का नाम हरबार उछलता रही
उनका जाना तय और निश्चित है
जो रहे निष्पाप और निस्पृही उनको तो रुकना ही है।

आज हमें तय करना है
किनको बहार करना और किनको रखना है
सब की उलटी गिनती अब शुरू हो रही है
जनता उनपर अब हावी हो रही है।

हसमुख मेहता

Saturday, January 12, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 12 January 2019

आज हमें तय करना है किनको बहार करना और किनको रखना है सब की उलटी गिनती अब शुरू हो रही है जनता उनपर अब हावी हो रही है। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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