हवा का झोका..Hava Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

हवा का झोका..Hava

हवा का झोका
बुधवार, २३ जून २०२१

में शोला जरूर हूँ
पर जलाऊंगा नहीं
मे भोला जरूर हूँ
पर छलाऊंगा नहीं।

मुझे सब बदमाश समझते है
पर सामने से कहते नहीं
कहने से कतराते है
पर सरपर मंडराते नहीं।

हवा का झोका जरूर हु
पर कोई पेड़ गिराऊंगा नहीं
बह जाऊंगा खुशबू के साथ
पर मदहोश करूंगा नहीं।

साथ चल के तो देखो
खों में आँखे डालके तो देखो
में शर्माऊँगा नहीं
अपनी बात मनवा के रुकूंगा भी नहीं।

जिंदगी बिताने का इरादा है
फिर भी उसपर आमादा नहीं
छल करके प्रेम को मनवाउँगा नहीं
प्रेम के बहकावे में आकर आपको शर्मिंदगी भी दूंगा नहीं

डॉ हसमुख मेहता
डॉ. साहित्यिक

हवा का झोका..Hava
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
जिंदगी बिताने का इरादा है फिर भी उसपर आमादा नहीं छल करके प्रेम को मनवाउँगा नहीं प्रेम के बहकावे में आकर आपको शर्मिंदगी भी दूंगा नहीं डॉ हसमुख मेहता डॉ. साहित्यिक
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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