होने तो दो एक मुलाक़ात Hone To Do Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

होने तो दो एक मुलाक़ात Hone To Do

होने तो दो एक मुलाक़ात

ना छिपाए बनता है
ना दिल में रखे रखता है
ख़ुशी झलक ही जाती है
मन ही मन हंसी आही जाती है।

सोचा था उड़ान आसान होगी
मेरी अलग से पहचान होगी
में दुनिया को मेरी पसंद दिखाउंगी
और चाहत को अंत तक निभाऊंगी।

मेरे पंख मुझे ले चलते है
मेरे पाँव जमीं पर नहीं रुकते है
सहेलियां भी मुझे तांग करती रहती है
मनो सभी मिलकर इशारों में ही कहती है।

ये मेरा ही भ्रम है
पर जोश और हैं भी उतना ही है
प्यार की बोली को मेंसे सूना है
हर शब्द मेरे लिए एक गाना है।

वो पुकारे या ना पुकारे
में हूँ उनके सहारे
चल पडूँगी बस एक इशारे
मेरी मंज़िल अब दूर नहीं प्यारे।

न मुझे धन चाहिए या दौलत
बस अब तो बन गयी है एक आदत
हो जाउंगी उनकी इबादत
बस होने तो बस होने तो दो एक मुलाक़ात।

होने तो दो एक मुलाक़ात Hone To Do
Sunday, May 1, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 06 May 2016

प्रेम की उमंग में उत्साहित नायिका द्वारा भावनाओं की उत्कट अभिव्यक्ति.

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न मुझे धन चाहिए या दौलत बस अब तो बन गयी है एक आदत हो जाउंगी उनकी इबादत बस होने तो बस होने तो दो एक मुलाक़ात।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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