प्रभु जग रचयिता, , Jag Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

प्रभु जग रचयिता, , Jag

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प्रभु जग रचयिता
शुक्रवार, १० अगस्त २०१८

आप ही मेरा सहारा
सर्जनहारा, तारणहारा
गरीबों के दुलारा
सब को सम्हालनारा।

जीवन ज्योत जगाओ
डर को दूर भगाओ
संसार की माया से बचाओ
भवसागर तरवाओ।

मेरे नयन सदा अभिलाषी
देखने को हमेशा पिपासी
दिलछायी रहे उदासी
तुम तो हो घटघट के वासी।

तुम आन मिलो मेरे प्रभु
आप तो हो स्वयंभू
दर्शन दी जो जब मन भाए
मेरी अँखियाँ आंसू भर आए।

आप हो प्रभु जग रचयिता
छोटे बड़े जीव के रक्षिता
गलती हो तो क्षमा कर देना
स्वीकारजो प्रभु हमरी वंदना।

हम अबोल और सादे इंसान
मानेगे सदा आपका एहसान
मन सदा मचा रहता घमसान
आप केलिए है सदा आसान।

गसमुख अमथालाल मेहता

प्रभु जग रचयिता, , Jag
Thursday, August 9, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 10 August 2018

आप हो प्रभु जग रचयिता छोटे बड़े जीव के रक्षिता गलती हो तो क्षमा कर देना स्वीकारजो प्रभु हमरी वंदना...........so touching and impressive. A beautiful prayer nicely executed.

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 09 August 2018

हम अबोल और सादे इंसान मानेगे सदा आपका एहसान मन सदा मचा रहता घमसान आप के लिए है सदा आसान। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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