जहाँ पहुंचे मेरी नजर Jahan Pahunche Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जहाँ पहुंचे मेरी नजर Jahan Pahunche

जहाँ पहुंचे मेरी नजर

जहाँ जहाँ पहुंचे मेरी नजर
उसका हो मेरे पर असर
में हमेशा रहु अग्रेसर
सपनो को पूरा करूँ समयसर।

हर रोज मेरी सोच बदलती है
निगाहें इधर उधर देखती है
उसको चैन नहीं पलभर
नींद नहीं आती रातभर।

में कामुक नहीं हूँ
औरत के पीछे कभी नहीं दौड़ता हूँ
फिर भी एक सहवास का हामी हूँ
जीवन में बदनामी नहीं चाहता हूँ।

जब जीवनचर्या से फुरसत पाता हूँ
तो मन में सुकून पाता हूँ
हर गुजरा हुआ पल मुझे एक ही याद दिलाता है
कोई भी चेहरा मुझे फ़रियाद करता नहीं दिखता है।

मेरे हाथ उसकी दुआ के लिए उठ जाते है
सपने मुझे खूब सुहाते है
कई बार तो मुझे बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है
में सुख की नींद सो पाता हूँ और उसकी शरण में निंद्राधिन हो जाता हूँ।

मेरा कर्म मेरे अधीन है
मेरा मन कभी भी पराधीन नहीं रहा हैं
मैंने हर चीज़ को भगवान् का आशिर्वाद समझा
उसके चरणों में मत्था टेका और और प्रसाद को शेर किया साझा।

जहाँ पहुंचे मेरी नजर Jahan Pahunche
Tuesday, December 13, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 13 December 2016

मेरा कर्म मेरे अधीन है मेरा मन कभी भी पराधीन नहीं रहा हैं मैंने हर चीज़ को भगवान् का आशिर्वाद समझा उसके चरणों में मत्था टेका और और प्रसाद को शेर किया साझा।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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