जहाँ पहुंचे मेरी नजर
जहाँ जहाँ पहुंचे मेरी नजर
उसका हो मेरे पर असर
में हमेशा रहु अग्रेसर
सपनो को पूरा करूँ समयसर।
हर रोज मेरी सोच बदलती है
निगाहें इधर उधर देखती है
उसको चैन नहीं पलभर
नींद नहीं आती रातभर।
में कामुक नहीं हूँ
औरत के पीछे कभी नहीं दौड़ता हूँ
फिर भी एक सहवास का हामी हूँ
जीवन में बदनामी नहीं चाहता हूँ।
जब जीवनचर्या से फुरसत पाता हूँ
तो मन में सुकून पाता हूँ
हर गुजरा हुआ पल मुझे एक ही याद दिलाता है
कोई भी चेहरा मुझे फ़रियाद करता नहीं दिखता है।
मेरे हाथ उसकी दुआ के लिए उठ जाते है
सपने मुझे खूब सुहाते है
कई बार तो मुझे बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है
में सुख की नींद सो पाता हूँ और उसकी शरण में निंद्राधिन हो जाता हूँ।
मेरा कर्म मेरे अधीन है
मेरा मन कभी भी पराधीन नहीं रहा हैं
मैंने हर चीज़ को भगवान् का आशिर्वाद समझा
उसके चरणों में मत्था टेका और और प्रसाद को शेर किया साझा।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
मेरा कर्म मेरे अधीन है मेरा मन कभी भी पराधीन नहीं रहा हैं मैंने हर चीज़ को भगवान् का आशिर्वाद समझा उसके चरणों में मत्था टेका और और प्रसाद को शेर किया साझा।