ज़माने से अलग Jamane Se Alag Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

ज़माने से अलग Jamane Se Alag

ज़माने से अलग

ज़माने से अलग नहीं हो सकते
पाँव आघे बढ़ने से नहीं रुकते
जीवन है तो सब का सामना करना पडेगा
जीवन का वजन खुद ही धोना पडेगा। ज़माने से अलग

जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता!
जिसे हमें रोना आता
स्वजन के मर जाने से थोड़ा सा मन जरूर भर जाए
पर ऐसा नहीं होता की जीना ही दूभर हो जाए। ज़माने से अलग

जोश हो पर होश भी साथ में जरूर हो
नाम के साथ काम भी मशहूर हो
जीने का दुसरा नाम ही प्रगति है
अन्यथा बस बची हुई दुर्गति ही है। ज़माने से अलग

प्यार करना एक इबादत है
इंसान की कमजोरी ओर आदत भी है
पर उसके लिए अपने आपको खो देना कहाँ की अकलमंद बात है?
ये तो गधे को भी बुखार आ जाए ऐसा तुक है। ज़माने से अलग

ज़माने से अलग Jamane Se Alag
Thursday, October 6, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 09 October 2016

welcome sayda layla Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 October 2016

प्यार करना एक इबादत है इंसान की कमजोरी ओर आदत भी है पर उसके लिए अपने आपको खो देना कहाँ की अकलमंद बात है? ये तो गधे को भी बुखार आ जाए ऐसा तुक है। ज़माने से अलग

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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