जी छोटा ना करना.. Ji Chhoa Na Karna Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जी छोटा ना करना.. Ji Chhoa Na Karna

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जी छोटा ना करना

मेरा यार मुझ से रूठा है
वो जग में सब से अनूठा है
उसे मनाने आज मुझे जाना है
उसे खीचके वापस लाना है

मेरा प्यार है मुझे जी वरगा
अजीज सब से और स्वर्ग सरीखा
उसका बारे मुझे कुछ नहीं कहना
दिल में समाया है सभी दुःख सहना

उसका आना युही सहज था
मेल हमारा सिर्फ महज था
अब क्या हो गया है खुदा ही जाने
प्यार के पतंगे है, जल जायेंगे परवाने

वो पत्थर दिल कभी नहीं थी
'शिल्प' से बनी कोई मूरत भी नहीं थी
आज कल रुख थोड़ा सा बदला हुआ है
चाँद बादल में यु ही छुपा है

ना कर तंग और गिला रख मन में
वारी वारी जाऊ में तेरे नयनमें
तेरी एक इश्क नजर, सब कुछ भुला दे
चाहे कोई ले ले सब कुछ बस मुझे भी मिला दे

ना मैंने पूछा ना उसने भी चाहां
वादा हम दोनों का एक ही रहा
छोड़ के एक दुझे को ना जाना
सब कुछ करना, पर जी छोटा ना करना

COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 14 August 2013

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Mehta Hasmukh Amathaal

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