जी ना दूभर हुआ Jina Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जी ना दूभर हुआ Jina

जी ना दूभर हुआ

Monday, March 12,2018
8: 49 AM

जी ना दूभर हुआ

में क्यों जीता हूँ मर के?
जीवन क्या इसी के है वास्ते
में मानव धर्म क्यों नहीं निभाता?
जीना मरना तो है हाथ मे विधाता।

मर ने के लिए कहीं भी जाना नहीं पड़ता
आदमी यूँ ही निराश हो जाता
जीने की हिम्मत नही
और मरने की आदत नहीं।

होंसला बुलंदी में है
प्यार में वो ताकत है
प्यार वो ही पाएगा
जिसकी समझ में आ जाएगा।

कायर का वो काम नहीं
जिसको प्यार की कदर नहीं
समंदर की गहराई को दुसरा क्या जाने?
क्यों मर मिटते है परवाने?

जीवन दो क्षण का
साथ पल भर का
फिर भी साथ जीवन भर का
सौदा है साथ निभाने का।

कुछ नई किया जीवन में यदि प्यार नहीं किया!
और फिर प्यार कर के नहि निभाया
वो जीना क्या जीना हुआ?
जिसका जीना दूभर हुआ।

जी ना दूभर हुआ Jina
Sunday, March 11, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 12 March 2018

welcome nabib jain 1 Manage Like · Reply · 3m

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Mehta Hasmukh Amathalal 12 March 2018

welcome minmin swe

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Mehta Hasmukh Amathalal 12 March 2018

welcome minmin swe

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Mehta Hasmukh Amathalal 11 March 2018

कुछ नई किया जीवन में यदि प्यार नहीं किया! और फिर प्यार कर के नहि निभाया वो जीना क्या जीना हुआ? जिसका जीना दूभर हुआ।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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