जीना है मैंने Jina Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जीना है मैंने Jina

जीना है मैंने

जीना है मैंने
सजाना है मैंने
कुछ तो बाकी है
पूरा करना है मैंने।

ठान ली है मन में
सोच लिया है जीवन में
करेंगे वोही जो मेरा मन चाहे
समय भले ही छूट जाए।

मेरे विश्वास अटूट है
उपरवाले पर और उनपर
कभी ना दुःख देनेवाला
और कभी ना रुलानेवाला।

यही मेरी दिली दास्ताँ है
वो मेरा फरिश्ता है
जोड़ी भले ना बन पाए
वो मेरा सच्चा मददगार है।

मुझे क्या चाहिए उनसे?
बस एक गुझारिश है उनसे
कभी फुलोमे आके बस जाया करो
अपनी हंसी को भंवरो के कान मे फंक दिया करो।

मैंने किसी से नहीं कहना
बस आगे बढ़ता ही रहना
नाम उसीका बसाके रहना
सब रंगो की माला पहनकर ही रखना।

जीना है मैंने  Jina
Friday, June 16, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

welcome aashalibhardra mehta Like · Reply · 1 · Just now · Edited

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welcoem bijendra singh tyagi Like · Reply · 1 · Just now

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welcome hiteh sharma Like · Reply · 1 · Just now

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मैंने किसी से नहीं कहना बस आगे बढ़ता ही रहना नाम उसीका बसाके रहना सब रंगो की माला पहनकर ही रखना।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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