जिस्म पर जोर नहीं
रविवार, ६ फरवरी २०२२
जिस्म पर जोर नहीं
मेरा कहना तो मानता ही नहीं
जो मन में आया, खा लिया
बस अपने आपको ही तगड़ा किया।
ऊपर का हिस्सा किराये पर दे दिया
बल पर जोर दिया बुद्धि का प्रदर्शन किया
बेवकूफ बना खुद, अपने को मुर्ख साबित किया
सुन्दर तन तो बनाया पर कुछ काम नहीं आया।
कहते है 'तन पड़ता भारी '
क्योंकि अक्कल की हो गई बिमारी
तन सोचता मार दू, गीरा दु
अकक्ल कहती, तूजे में रोक दू
यदि हो जाता तन और मन का समन्वय
सभी संकलन में रहते अवयव
बुद्धि से जग जीता जाता
मनुष्य को सन्मान दिलाता।
कहते है 'अक्कल बड़ी के भैंस '
पर सबको लगी रहती आस
सब बने रहना चाहते ख़ास
इसी में है सबका विश्वास।
तन का गुरुर
बनाता मन को मगरूर
दोनों की है खास जरूर
इसके बिना मानव है मजबूर।
सुन्दर देह, तन सुडोल
यदि हो जाय तन बेडोल
पर अक्कल रहे कायम
मनपर हमेशा रहेगा संयम।
डॉ. हसमुख मेहता
साहित्यिकी
asmikh Mehta welcome.. Gilberto Fernandes Teixeira Reply3 d
Author Hasmikh Mehta welcome..Vinod Fullee Reply4 d
Damion Darnell TRUE PEACE AND JOY COMES ONLY FROM GOD THE SUPREME POWER OF ALL LIFE FOREVER BLESS THE HOLY GOOD GOOD GOD
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welcome..Karma La Reply1 d