काश.....Kaash Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

काश.....Kaash

काश

Wednesday, April 25,2018
5: 55 PM

काश वो भी ऐसा सोचते
और केहते रहते
"मुहब्बत पाक है और सिर्फ जिस्मानी नहीं है
उसको समज ने में सिर्फ आसानी ही आसानी है।

मुहब्बत यदि पैगाम है
वो वो बिलकुल ही बेलगाम नहीं है
मुहब्बत और प्यार एक ही सिक्के दो पहलू है
बाकि चर्चा बेवजह ओर फ़ालतू है।

हम तो खाली सोचते रह गए
और सपनो में खोते गए
कैसे कैसे दिमाग में बिचार आ गए?
शादी की रसम ऐसे ही निभाते गए।

हम तो बिखर ते ही गए
उनकी हर बात मानते गए
अब एक पल की भी दुरी सहन नही होती
फिर भी मन को मनाती रहती।

वो तो सबसे अलग ही है
क्या करें हम वो जो ठहरे सुहाग है?
हम ने भी एक टेक रख ली है
उनकी हर बात मान ली है।

अब तो बस कुछ दिन की ही देरी है
लग्नवेदी भी सजाई गयी है
मेहदी और बाकी की रसम पूरी हो गई है
अब तो दुल्हा की आने की देरी है।

काश.....Kaash
Wednesday, April 25, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

S.r. Chandrslekha Very nice 1 Manage Like · Reply · 46m

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Mehta Hasmukh Amathalal 25 April 2018

Aap bahut hi sunder Kavita likhte hai.... s r chandreslekha

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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