कैसा ये रीति-रिवाज बना
जो लड़कियों के लिए अभिशाप बना इसकी वजह से न जाने कितनी लड़कियां चढ़ जाती है फांसी
क्या तुझमे औकात नहीं है खुद की शादी
करने की
या तेरे पास पैसे नहीं है खुद से कुछ खरीदने की
कब तक दहेज़ के लिए लड़कियों और उनके माँ बाप को करते रहोगे तंग
कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म
क्या दहेज़ में मिले इन पैसो से उन लड़कियों को जिंदगी भर खिला दोगे
कब तक अपनी झूठी शान के लिए लड़कियों को जिंदा जलाते रहोगे
कब तक दहेज़ के लिए लड़कियों को करते रहोगे शमशान में जिन्दा दफ़न
कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म
अपने देश की थी एक सती नारी
जो अपने पति के जान के लिए यमराज से भी लड़ गई थी बेचारी
कब तक दीवाली और दशहरे पर लक्ष्मी दुर्गा और कन्याओं को पूजने का ढोंग करते रहोगे तुम
कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म
कब तक प्रताड़ित करते रहोगे इन लड़कियों को
थोड़ा सा तरस खाओ इन पर तुम
क्या उसे ही है तुम्हारी जरुरत
कब करोगे इस बीमार मानसिकता को खत्म
कब करोगे इस दहेज़ प्रथा को खत्म
-विकास कुमार गिरि
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