मैं अकेला थक सा जाता हूँ फिर जब तेरी कदमो की सुनता हूँ आहट, जब याद आती है तेरी चाहत
इस जूनून में मैं हजार बार तोड़ दू
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दू|
मैं कमजोर सा महसूस करने लगा हूँ फिर जब सुनता ही तेरी पाजेब की छन-छन, तेरी चूड़ियों की खन-खन
ये मुझे देती है हिम्मत और ताकत
अब न सुने कोई प्रेमी अपने प्रेमिका की चीख पुकार
इस गुस्से में धरती क्या पूरा आसमान ख़ोद दू
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दू|
'ऐ पहाड़ इतने सालो से कर रहा हूँ मेहनत अब तो तू देदे रास्ता, लोगो को आने जाने में होती है दिक्कत
कोई तो मेरी सुनता नहीं,
लेकिन अब तुझसे है इस मांझी की आखरी गुज़ारिश और तुझे है मेरी फाल्गुनिया का वास्ता
मैं अपनी जान को यही पर कर दुंगा कुर्बान
अब मेरी इज्जत तेरे हाथों में
कही मेरे प्यार का नाम हो जाए ना बदनाम.'
अब अकाल पड़े आंधी आए या तूफान
चाहे कफ़न में हो जाऊ मै दफ़न
अगर तू प्यार से नहीं माना तो मरते-मरते भी मैं तेरा सारा अकड़ तोड़ दू
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दू|
विकास कुमार गिरि
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