कह देना.. Kah Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कह देना.. Kah

कह देना
गुरूवार, ३ अक्टूबर २०१९

कहते कहते कुछ नहीं कह पाया
मन थोड़ा सा गभराया
दिल ने थोड़ा उकसाया
पर कुछ काम नही आया।

दिल का हाल ऐसा ही होता है
जब मिलने की चाह तीव्र हो जाती है
मन में अधिराई बहुत बढ़ जाती है
मानो नदी में बाध आ जाती हो।

पानी का बहाव तेज हो जाता है
खून भी रगो में तेजी से दौड़ने लगता है
रास्ते मे जो भी आया, खिंच ले जाता है
पूरी दुनिया से मानो नाता जुड़ जाता है।

हमें नहीं मालुम और क्या क्या होता है?
दिल में क्यों बेचैनी बढ़ा जाता है?
किसी से बात करना भी अच्छा नहीं लगता है
मानो जीवन अधूरा-अधूरा लगता है।

आज पता चला प्यार में कितनी ताकत होती हैं
दोनों में चाहत की गठान मजबूत हो जाती है
एक दूसरे को देखे बिना मानो जीवन अकारण लगता है
बस में दिल में अधिराई और चिंता का विषय बन जाता है।

दिल की गहराई में झाँकना मेरे बस की बात नहीं
समंदर की गहराई तक छूने की औकाद नहीं
बस दिल में एक दबी- दबी टीस सी उठती है
दिल मचलता है और बैचेनी बढ़ जाती है।

"कह दे ना" मन उत्साह में आ जाता है
प्यार का शब्द मन में गूंजता रहता है
कितने खुशनसीब इसको पा लेते होंगे?
अपनी मुराद को मूर्तिमंत कर लेते होंगे।

हसमुख मेहता

कह देना.. Kah
Thursday, October 3, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 October 2019

" कह दे ना" मन उत्साह में आ जाता है प्यार का शब्द मन में गूंजता रहता है कितने खुशनसीब इसको पा लेते होंगे? अपनी मुराद को मूर्तिमंत कर लेते होंगे। हसमुख मेहता Hasmukh Amathalal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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