कला... Kala Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कला... Kala

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कला
रविवार, १८ नवंबर २०१८

कला का भी व्यापार होता है
कलाकार का भी भाव बोलता है
कला का आजकल व्यवसायीकरण हो गया है
छोटा-मोटा कलाकार आजकल गायब हो गया है।

जैसे बड़ा जीव छोटे को खा जाता है
ठीक वैसे ही बड़ा कलाकार छोटे को उभरने नहीं देता है
इसमें भी वंशवाद की बोलबाला है
अच्छे कलाकार की औलाद ही आगे बढ़ पाती है।

जिस के पास संसाधन है
और धन पर्याप्त है वो ही आगे बढ़ जाता है
आप कितने भी बेहतरीन कलाकार है
बस आप अदाकार ही रह जाते है।

कला का वास्ता भूमि से जुड़ा हुआ है
संस्कृति की जेड बहुत मजबूत होती है
कलाकार का उसे जुड़े रहना बहुत ही अनिवार्य है
कला और संस्कृति एक दूसरे के पक्के पर्याय है।

चाहे कोई अपनी मर्जी जोर लगा ले
जबरदस्ती उसकी अदाकारा जमीं छीन ले
प्रतिभा और कला छिपी नहीं रह सकती
एक दिन उसे सूरज की प्रतिभा मिल ही जाती।

साभार: टिकूलीकला

हसमुख मेहता

कला... Kala
Sunday, November 18, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 November 2018

वाह। बहत खूब।.. tribhvan kaul

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Mehta Hasmukh Amathalal 18 November 2018

चाहे कोई अपनी मर्जी जोर लगा ले जबरदस्ती उसकी अदाकारा जमीं छीन ले प्रतिभा और कला छिपी नहीं रह सकती एक दिन उसे सूरज की प्रतिभा मिल ही जाती। साभार: टिकूलीकला हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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