खुश ही रहूंगा Khush Hi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

खुश ही रहूंगा Khush Hi

खुश ही रहूंगा

बिता हुआ समय नहीं वापस आता
पर जब भी यादों में आता, खूब रुलाता
बार बार यही कहता 'मुझे क्यों भूल गएँ? '
मेरी की हुई हरकतों को याद दिलाते गए।

समय बड़ा बलवान
हम सिर्फ एक इंसान
क्या कहा और क्या किया!
बस मुकर गए और धोखा ही दिया।

दुखी भी कर देते है कईबार
जब में सोचता हूँ कहाँ है पुराने यार?
मुझे बार बार परेशान करते पर रहते साथ साथ
यही तो मुझे याद आता है उनका प्यार भरा संगाथ।

हमारा बस एक ही प्रस्ताव
बड़े होकर खीचेंगे नाव
अलग अलग जरूर होंगे
पर मिलेंगे जब भी अच्छे प्रसंग होंगे।

भीड़ में असंख्य चेहरे दीखते है
मानो रंगबिरंगी फूल खीलते है
रंग अनेक पर रौनक और दीखती है
'में कहाँ हूँ इनके बीच' यह बारबार सोचती है।

दिन और भी कट जाएंगे
मेरे चिंतित मन को और सताएंगे
पर में खश हूँ और खुश ही रहूंगा
सब की याद मन में ताजा ही रखूंगा।

खुश ही रहूंगा Khush Hi
Monday, December 19, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 20 December 2016

welcome yogina abhilash Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 19 December 2016

Patel Manthan Nice sirji Unlike · Reply · 1 · 4 mins

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Mehta Hasmukh Amathalal 19 December 2016

welcome patel manthan Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 19 December 2016

दिन और भी कट जाएंगे मेरे चिंतित मन को और सताएंगे पर में खश हूँ और खुश ही रहूंगा सब की याद मन में ताजा ही रखूंगा।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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