जगत का तात
शनिवार, २ फरवरी २०१९
जगत का तात यूँही नहीं मरता
अपने दुःख की कहानी किसे कहता!
जब नहीं दिखाई देता कोई भी रास्ता
वो अपने जीवन को समाप्त करता।
आजकल खेती बड़ी महंगी हुई
और काफी म्हणत भी रंग नहीं लाइ
एक और कुदरत से पड़े मार
फिर हो जाता किसान लाचार।
ना कोई मदद और नहीं कोई पुरस्कार
उसके जीवन में छा जाता अन्धकार
जब दब जाता कर्ज के डूंगर में
तब दिखाई नहीं देता रास्ता अंधरे में।
कहाँ जाऊं! किसे बताऊँ!
अपना दुखड़ा किसे सुनाऊँ
अब तो तो हार गयामें अपनी जिंदगी से
भगवान भी रूठ गया मेरी बंदगी से।
किसान को अपनीमेहनत का फल मिले
फसल के एवज में बाजार से अच्छे दाम मिले
अपनी दुनियादारी शांति से निभा सके
अपना सीना तानकर खड़ा हो सके
हसमुख मेहता
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हमारे किसान का दर्द कौन जानता है? रात दिन मेहनत करने के बाद भी उसे इज्ज़त की ज़िन्दगी और शान्ति से रहना नसीब नहीं होता. हमारा अन्नदाता स्वयं दाने दाने के लिए मोहताज हो जाता हसी. बहुत बार उसे अपनी मुसीबत का एक ही समाधान सूझता है- ख़ुदकुशी. आपकी इस भावपूर्ण कविता में एक किसान की दुर्दशा का सजीव चित्रण है, हसमुख जी.
किसान को अपनीमेहनत का फल मिले फसल के एवज में बाजार से अच्छे दाम मिले अपनी दुनियादारी शांति से निभा सके अपना सीना तानकर खड़ा हो सके हसमुख मेहता
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