कितना उचित है
इश्क़ ना हम कभी समझे है
ओर नाही उसे समझ पाएंगे
हम नादान है ओर नादान ही रहेंगे
सदा दिल के अंदर जलते ही रहेंगे।
क्यों दिल दोखा देता रहता है?
क्यों वो उलटा सोचता रहता है?
गनीमत है की वो इंसान है
उसमे थोड़ी परखने की शक्ति है।
काश! हम जानवर नहीं हो जाते
'रूतबा -इ -ख्याल' बार बार आते
अपने और पराये के बारे में सोच पाते!
ज़िंदा और मुर्दा के बिच का फर्क कर पातें।
कितना घिनोना और इंसानियत का नंगा नाच?
यही है फर्क और जीवन का असली सच
माँ बहने घर में बराबर है
बाहर के लिए ये सब जानवर है।
पडोसी, पडोसी नहीं रहा
राहदारी लूटेरा बन रहा
'औरत और अस्मिता' कल की बात हो गयी है
कोई नहीं कह सकता इंसानियत कहाँ बस्ती है।
जब पिता हैवान बन सकता है
जब माता शैतान का रूप ले सकती है
जान लड़का माँ बाप का कातिल हो सकता है
ऐसे में किसीका कुछ भी बोलना या कहना कितना उचित है।
जब पिता हैवान बन सकता है जब माता शैतान का रूप ले सकती है जान लड़का माँ बाप का कातिल हो सकता है ऐसे में किसीका कुछ भी बोलना या कहना कितना उचित है।
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welcome aas nanda Unlike · Reply · 1 · Just now