कितना उचित है Kitna Uchit Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कितना उचित है Kitna Uchit

कितना उचित है

इश्क़ ना हम कभी समझे है
ओर नाही उसे समझ पाएंगे
हम नादान है ओर नादान ही रहेंगे
सदा दिल के अंदर जलते ही रहेंगे।

क्यों दिल दोखा देता रहता है?
क्यों वो उलटा सोचता रहता है?
गनीमत है की वो इंसान है
उसमे थोड़ी परखने की शक्ति है।

काश! हम जानवर नहीं हो जाते
'रूतबा -इ -ख्याल' बार बार आते
अपने और पराये के बारे में सोच पाते!
ज़िंदा और मुर्दा के बिच का फर्क कर पातें।

कितना घिनोना और इंसानियत का नंगा नाच?
यही है फर्क और जीवन का असली सच
माँ बहने घर में बराबर है
बाहर के लिए ये सब जानवर है।

पडोसी, पडोसी नहीं रहा
राहदारी लूटेरा बन रहा
'औरत और अस्मिता' कल की बात हो गयी है
कोई नहीं कह सकता इंसानियत कहाँ बस्ती है।

जब पिता हैवान बन सकता है
जब माता शैतान का रूप ले सकती है
जान लड़का माँ बाप का कातिल हो सकता है
ऐसे में किसीका कुछ भी बोलना या कहना कितना उचित है।

कितना उचित है Kitna Uchit
Friday, January 20, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 21 January 2017

welcome aas nanda Unlike · Reply · 1 · Just now

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Gajanan Mishra 20 January 2017

ham insaan hai, hamko sojna jahie.

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Mehta Hasmukh Amathalal 20 January 2017

जब पिता हैवान बन सकता है जब माता शैतान का रूप ले सकती है जान लड़का माँ बाप का कातिल हो सकता है ऐसे में किसीका कुछ भी बोलना या कहना कितना उचित है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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