कोई नहीं जग में तेरा... Koi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कोई नहीं जग में तेरा... Koi

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कोई नहीं जग में तेरा
शनिवार, १६ मार्च २०१९

कोई नहीं जग मे तेरा
फिर क्यों डाला है डेरा?
नहीं है कायम तेरा बसेरा
उड़ जाना जब होता सवेरा।

सब को भाती संसार की माया
कोई नहीं उस से बच पाया
जो समज पाया उसको
मानो जीत लिया जग को।

नहीं आता साथ सब कुछ यहाँ
पीछे छूट जाता सारा जग यहाँ
फिर भी लगी रहती उसकी लगन
जान चली जाती अनंत जोजन।

साँस है तब तक आस है
दुनिया अपने पास है
लोग भी ख़ास है
फिर भी कहते मनहूस है

मैने जाना सब को नजदीक से
पर समजा नहीं ठीक से
कोई दे गया मुझे धोखा
और किसीने तो मुझे कहींका ना रखा।

रहो ना कभी बेखबर
तो ना होगा कोइ असर
जमाने को बस सलाम कर दो
फिर अपने आप को आराम फरमा दो।

हसमुख मेहता

कोई नहीं जग में तेरा... Koi
Saturday, March 16, 2019
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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