कोई परिभाषा नहीं Koi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कोई परिभाषा नहीं Koi

कोई परिभाषा नहीं


जिसके नामकी कोई परिभाषा नहीं
जो पढ़ी लिखी ना होकर भी भाषा पर प्रभुत्व सही
बच्चे का हर शब्द उसके शब्दकोष में हो लिखा हुआ
अपनी छाती का मर्मभेदी लब्ज बच्चे की हिफाजत के नाम हुआ।

ऐसी माँ कहाँ से मिल सकती है
जो अपने बच्चे ले लिए मर सकती है
पुरे जहाँ से मुकाबला करनेकी शक्ति जिसके पास हो
वो शख्सियत का दुसरा नाम 'माँ या माता ' ही हो।

कल ही का वाक्या सूना और कहानी सुनी
माँका हाल देखा और कंपकंपी छूटी
पैसे के लिए शैतान ने सरपर कुल्हाड़ी दे मारी
आँखे निकाल दी और शैतानियत की हद की पूरी।

मार दो, मिटा दो ऐसी प्रभु का दुसरा नाम रखने वाली को
कौन देख पाएगा उसका दर्द और सुनेगा दी हुई गाली को
ये हमारा चरित्रहीन चेहरा है जो हमें शर्मसार कर रहा है
माँ का यह हाल बारबार दोहरा रहा है।

किसी की बहन हो या अपनी
जिस्म हो जाता है छलनी
जब दर्दनाक चीखे सुनाई देती है!
कर्णपटल पर टकरा कर बेहरा बना देती है सुन्न सा चेहरा बनाकर कालिख पोत देती है।

यदि यही हाल कुछ समय और रहा
तो समझ लो संसार का नष्ट हो जाना संभवित रहा
कोई नहीं बचा पाएगा हमारी धरोहर को
माता ही है एक जान जो समझती है अपने बच्चों को।

ना करो अवघ्या और ना करो अपमान
कैसे कर सकते हो आप उसका वध और हनन?
माँ तो एक देवी का स्वरूप लेकर आई है आपके लिए
और आप ही तुले हुए हो उसको स्वर्ग भेजने के लिए।

कोई परिभाषा नहीं Koi
Wednesday, August 30, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 30 August 2017

vRitu Dhawan Nice words Like · Reply · 1 · 1 hr Remove

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Mehta Hasmukh Amathalal 30 August 2017

welcome ritu dhawan Like · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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