कोई नहीं पूछता Koi Nahi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कोई नहीं पूछता Koi Nahi

कोई नहीं पूछता

कोई नहीं पूछता घर में
सब व्यस्त है अपने काम में
में आता हूँ धीरे से और बैठ जाता हूँ
पुरे हुए दिन की समीक्षा करता हूँ।

सब वयस्क हो गए है
अपने में मस्त और मशगूल हो गए है
में ज्यादा चंचूपात नहीं करता
अपने आप में सम्हाल कर रहता।

में धीरे से उनके पास जाती हूँ
सर पे धीरे से बाम घिसकर सहलाती हूँ
दुनियाभर का गम मानो उनके सर पर है
मन में उनके भरपूर प्यार पर भी है।

सबके अपने अपने कार्य क्षेत्र है
पर घर में घर सब मित्र है
एक दूसरे की समझ है
किसी चीज के लिए झड़प नहीं है।

माँ के लिए यह अभिशाप नहीं है
इसमें उसकी निष्पाप भागीदारी है
किसी को माँ के लिए समय नहीं
पर हाँ, कोई भी गीला या रंज मन में नहीं है।

कोई नहीं पूछता Koi Nahi
Thursday, January 5, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 January 2017

माँ के लिए यह अभिशाप नहीं है इसमें उसकी निष्पाप भागीदारी है किसी को माँ के लिए समय नहीं पर हाँ, कोई भी गीला या रंज मन में नहीं है।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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